मंगलवार, 19 जून 2012

थमी साँस या जिंदगी

वक़्त यूँ ठहरा था ज़िन्दगी में मेरी
मानो सांस थमी सी थी
आ जाती तो ज़िन्दगी
निकल जाती तो मौत 
पर वो ठहराव इतना लम्बा था की
उस ठहराव में ही ज़िन्दगी ढूंढता था
सालों ढूंढता रहा पर अब लगता है की
ज़िन्दगी के इंतज़ार में खुशियों की खो दिया
थमी सांस में ज़िन्दगी ही तो मिली थी
सांस निकल गयी और ज़िन्दगी को खो दिया।

ढलान

ज़िन्दगी हर लम्हा थोड़ी थोड़ी ख़त्म होने को है
सूरज अब ढलान पर है
रौशनी मंद है
तेज़ी थकी हुई सी मालूम पड़ती है
सुबह से छाये घने काले बादल अब साफ होने को हैं

पर अब चाह नहीं की चमकूं
अब तो ढल ही जाऊंगा
मेरे चरम का समय संघर्ष में ही बीत गया
अब जीता तो क्या, हारा तो क्या
अब संघर्ष नहीं शांति चाहिए

अब तो यही कोशिश है कि
चाहे पूरी दुनिया को रौशन कर सकूं
या न कर सकूं
पर अपने ढलने तक अपनी रौशनी में
सांस ले सकूं 

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

महफिलें

कभी दोस्त मिले जो दोज़ख में तो एहसास हुआ
कि जन्नत में अकेले पड़ गए होते
मेरे यारों के बगैर अगर जन्नत भी मिलती
तो कसम से, हम फिर से मर गए होते



उलझन

मेरी ज़िन्दगी की डोर कुछ इस तरह उलझी,
कि उलझनों को ज़िन्दगी बना लिया

अधूरी ख्वाहिश

कभी पूछता हूँ ज़िन्दगी से,
वो क्यूँ एक पहेली है,
कुछ मांगता हूँ ज़िन्दगी से
वो ख़ामोशी से देती है,
मगर न जाने क्यूँ हमेशा
एक कमी बनी रहती है
शायद ज़िन्दगी हमेशा यही कहती है
मेरे बच्चे तेरी मांग हमेशा अधूरी रहती है


खाली जेब

रात भर सड़क पर यूँ ही घूमता रहा पर इल्म न था
घर आकर फटे छप्पर को देखा तो महसूस हुआ
रात बहुत सर्द थी...

मेरी मोहब्बत

मेरी मोहब्बत का हिसाब न करना, कुछ चीज़ें बेहिसाब ही अच्छी लगती हैं

नजरिए

मेरे नसीब में जो था वो मुझे मिला, जो नहीं मिला मुझे वो बदनसीब था 

मेरी तन्हाई

हर रात को तन्हाई मेरे पास आती है,
मेरी रूह को दस्तक देती है
और मुझे ये जताती है
की मुझे महसूस न हो तन्हापन अपना
इसलिए मेरे साथ वो खुद सो जाती है I

आईना

कभी खुद से भी इतने वादे न करो की निभा न सको,
खुद को छिपा न पाओगे अगर आईना पूछ बैठा.

झिझक

वो अपने नसीब की बेरुखी पर शर्माते हैं,
अपना हर ग़म दोस्तों से छिपाते हैं,
दर्द ये नहीं की वो याद नहीं करते,
याद तो करते हैं पर बात करने से कतराते हैं.

मेरे अपने

अकेला नहीं मैं इस सफ़र में, बहुत रंज है जो साथ निभाते हैं,
खुशियाँ हो की न हो, ग़म हमेशा मेरे साथ मुस्कुराते हैं.

तन्हा हमसफर

किस्मत की बेरुखी दुनिया की नाराज़गी से ज़्यादा है 
मेरा ख़ालीपन मेरी आवारगी से ज़्यादा है
वो जब साथ थे मेरे, मैं नाराज़ था उनसे
आज उनकी नाराजगी मेरी नाराजगी से ज़्यादा है

हालात

मेरे हालात ज़रा खराब क्या हुए कि 
लोगों ने रास्ता बदल लिया 
हर जाम पर देते जो थे दोस्ती का वास्ता
आज उन्होंने वास्ता बदल लिया 

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

मुसाफिर

मुसाफिर हूँ सफ़र करता हूँ, राह कैसी भी हो गुज़र करता हूँ 

काफ़िला साथ हो तो और बात है, मैं तो तन्हा  ही बसर करता हूँ