मंगलवार, 19 जून 2012

ढलान

ज़िन्दगी हर लम्हा थोड़ी थोड़ी ख़त्म होने को है
सूरज अब ढलान पर है
रौशनी मंद है
तेज़ी थकी हुई सी मालूम पड़ती है
सुबह से छाये घने काले बादल अब साफ होने को हैं

पर अब चाह नहीं की चमकूं
अब तो ढल ही जाऊंगा
मेरे चरम का समय संघर्ष में ही बीत गया
अब जीता तो क्या, हारा तो क्या
अब संघर्ष नहीं शांति चाहिए

अब तो यही कोशिश है कि
चाहे पूरी दुनिया को रौशन कर सकूं
या न कर सकूं
पर अपने ढलने तक अपनी रौशनी में
सांस ले सकूं 

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